मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

प्रकृति की गोद में

 


कालिंदी जब नाग देवता के लिए एक टोकरी खाली करना चाहा उस वक्त कमरे में एक उम्र दराज नाग देवता चक्कर काट रहे थे।  उन्हें तो पकड़े जाने की फ़िक्र थी, और ही मारे जाने की।  फ़िक्र सिर्फ एक बात की ही थी कि भूल भुलैया से कैसे बाहर निकला जाय और कैसे कालिंदी के चुंगल से छुटकारा पाया जाय; प्रकृति के नियम से चलनेवाले नाग देवता को प्रकृति की ही गोद में खेलने का मन कर रहा था।  उन्हें अपने बचपन में और जवानी में किये जानेवाले सैर सपाटे की भी याद रही थी; कुछ ऐसी भी यादें रही थी जिस वक्त उन्हें ताजे मेढकों का शिकार करने का मौका मिला करता था।  पकड़े जाने के बाद कालिंदी के पास जहर उगलनेवाले दाँतों को भी समय समय पर गंवाना पड़ा, और फिर लंगड़े मेढकों पर टूट पड़ने से संतोष करना पड़ा।    

खेल दिखाने का सिलसिला शुरू ही नहीं हो पाया; कालिंदी अक्सर ही जहर का प्याला लेकर शहर चला जाया करता था; और फिर दो तीन दिन उपवास में ही बिताने की नौबत भी ही जाती थी।  अब उसे नए सदस्य को जगह देने के लिए किसी वरिष्ठ सदस्य को मुक्त करने की बारी गई; शायद वो सुनहरा अवसर मणिनाग को ही मिलना तय माना जाएगा ! कारण ! उन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता, वैसे नाग देवताओं की आँखें होती ही उस प्रकार की, ज्यादा कुछ शायद ही उन्हें दिखाई देता होगा।  उस बिरादरी में आँख और कान का कमजोर होना एक नैसर्गिक गुण ही माना जाएगा।

मणिनाग की टोकरी में ही नए नाग देवता को रखा गया और उनका गुस्सा कम करने के लिए करीब सात दिन उपवास में ही रखा जाएगा।  नाग मणि को छोड़ने के लिए जंगल की और जाने की बारी भी आई; कालिंदी को लगा विदा कर देने के पहले इसे कुछ खिलाकर भेजना चाहिए।  और फिर इतने दिन जिसका साथ रहा उसे भेजने के पहले खुश रखना चाहिए।  पर मणि नाग को अब अपाहिज मेढकों पर टूट पड़ने का विज्ञान नहीं भा रहा था, जाहिर सी बात रही कि उनहोंने परोसे हुए भोजन की तरफ देखा तक नहीं।  बिना कुछ खाये ही टोकरी छोड़कर निकल जाने के लिए आगे बढे और प्रखर धूप से खुद को बचाते हुए झाड़ी और जाने का निश्चय भी कर लिया। 

प्रकृति देवता की निगरानी में उन्हें भी अब अन्य पशु पक्षियों की तरह ही रहना होगा, उनके लिए जो भी निश्चय किये गए हैं उसी पर कायम भी रहना है ; फर्क सिर्फ इतना ही रहेगा कि अब सम्मुख समर में नेवलों से लड़ने की ताकत वो रूहानी फटकार दिखाने की ताकत नहीं रही।  अरण्य में महादेव की तरह देहधारी भी आजकल कहाँ मिलते जिनके साथ सर्दी के दिन बिता दिए जाएँ !

अनजाम की सोचकर कौन चलता होगा! और फिर ज्यादा सोचनेवाला शायद ही ठीक से चल भी पाता होगा ! पगडंडियों से चलनेवालों को राजपथ होकर चलना तो सहज ही जाता होगा।  रस्ते कैसे भी हों, चलने भर के लिए सत साहस जुटाकर मणि नाग भी वैसे ही चलेंगे जिसकी अनुमति उन्हें एक नैसर्गिक विधान के अंतर्गत मिली होगी।  मरने और मारने का विज्ञान भी पारितंत्र का अंश बना हुआ ही रहेगा, और उसी विज्ञान के अधीन हमें भी अपने परिसर में अन्य जीव को पनपता हुआ, बढ़ता हुआ और फिर मिटता हुआ देखना होगा; ऐसा भी नहीं माना जा सकेगा कि मानव इस पूरे पारी चक्र से अलग कोई अजीव सा प्राणी बना होगा जिसे मिटने और मिटाने की चिंता ही होती हो !

 

 

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