मंगलवार, 17 सितंबर 2024

राष्ट्रीय गरिमा

 एक बार फिर समूचे विश्व को शर्मिंदा होना पड़ा जब यह खबर निकलकर आ गई कि कलकत्ता के एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत एअक महिला चिकित्सक की जान चली गई; जान गई, या फिर उन्हें मार दिया गया इस विषय को लेकर काफी बहस चलता रहा।  काफी अटकलें भी चली।  कुछ लोगों को बचाने के लिए सबूत भी मिटा डाले गए। सबूत मिटा डालने के लिए की गई जल्दबाजी के कारण लोगों में रोष बढ़ता गए।  धरना प्रदर्शन का दौड़ भी चला।  सबको अपने जकड़े जाने का दर जो सत्ता रहा था।  दबाव चिकित्सा विज्ञान के व्यवसाय में लगे लोगों की और से आने लगा।  जाहिर सी बात है पैसों के दम पर न्याय का गला दबाने का विषय किसी को भी राष न आया और विविध सम्प्रदाय के लोग सड़क पर उतर आये।    

अपराधी कौन है; कोई व्यक्ति या फिर कोई दाल? यह न्याय प्रक्रिया और अपराध दमन शाखा का विषय है।  अपराधी अपराध करते समय कोई न कोई दाग जरूर छोड़ देता होगा; कलकत्ता का हर क़स्बा उन धब्बों और करतूतों से भर चूका है।  अपराध में लगे लोगों और समूहों का परिमंडल काफी हद तक सक्रिय पाए जाते होंगे; यहां तक कि कुछ विनिमय दरों पर उन अपराध प्रवण लोगों को जरूर शरण और संरक्षण मिल जाता होगा।  आंकड़ों  और सबूतों से ज्यादा आज उन तत्वों पर चर्चा करने की जरुरत महसूस की जा रही है, जिसके जरिये हम यह भी समझना चाहेंगे कि   अस्पताल में एक चिकित्सक के साथ हुए अन्याय के कारण बड़े पैमाने पर किसका नुकसान हुआ? कि उस नुक्सान  को सिर्फ एक शहर के दायरे में ही देखा जा रहा होगा ? क्या जनता के रोष को कुचल डालने के और सबूत मिटा डालने के कारनामों में जुड़े तंत्र को इस बात का ज्ञान नहीं कि बड़े पैमाने पर उस सम्प्रदाय को इसका मोल चुकाना पड़ सकता है ? अपने नागरिक देश के बाहर भी काम करते हैं; उनसे पूछ जा रहा होगा कि उनके देश में यह सब क्या चल रहा है? क्या शाशन नाम की कोई चीज है ?  

अपने देश में न्याय प्रक्रिया के बारे में लोगों का विशवास भी कम होता जा रहा है; समझदारी रखते हुए भी कुछ लोग अपराधियों का साथ दे रहे हैं; उनसे राजनीति विषयक फायदा भी उठाने का प्रयास करते हुए पाए जाते होंगे।  काफी दिन के अंतराल पर कलकत्ता की  गलियों से तिरंगे को सामने रखकर जुलूस करते हुए लोग पाए गए।  उन सबको न्याय चाहिए।  जहां न्याय प्रक्रिया की चाबी किसी ख़ास वर्ग के हाथ में आ गए हों; जहां न्याय प्रक्रिया को क्रियान्वित करनेवाले लोगों के हाथ में ही अपराध के धब्बे पाए जाते हों; जहां खुद आलाकमान ही भ्रष्ट हो गए हों वहाँ फिर आवाज बुलंद करते हुए नागरिकों के जत्थे को सडकों पर उतरते हुए देखा जाना एक आम बात ही समझें ।  उनके धीरज का बाँध टूट भी सकता है।  

हम इस उम्मीद में भी ज्यादा दिन नहीं बैठ सकते और न ही सभी चिकित्सा केंद्र को बंद करके न्याय माँगने के बारे में चिकित्सक और उनके साथी  आवाज बुलंद करते रहने में आनंद महसूस कर सकते हों ; फिर भी एक संवेदनशील व्यवसाय से जुड़े रहने के कारण चिकित्सक सम्प्रदाय पर सामान्य रूप से बड़ी जिम्मेदारी आ ही जाती है।  उस जिम्मेदारी कि बात याद करके चिकित्साल वर्ग का एक प्रतिनिधि दल प्रशाशन के साथ बातचीत का  सिलसिला जारी रखने के लिए राजी हो गए; उनको यह भी आश्वासन दिया गया कि दागी अधिकारियों को स्थानांतरित कर दिया जायेगा ; वे सभी अपराधी हैं भी या नहीं यह जांच का विषय मानकर चलें।  न्याय कि नैया उसी बवंडर के पास  आकर मंडराते हुए देखी जा सकेगी जहां से तिरंगे का हटाना और अन्य सभी झंडों का बुलंद  होना एक सहज प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकेगा।  कुछ ऐसे लोग भी अपने देश में मिल जाएंगे जो खुद को न्याय कि मूर्ती मान लेंगे और उनके एक वाक्य और कानून विषयक दांव कि कीमत अरबों में ाँकि जा रही होगी; यह न्याय के नाम पर एक प्रहसन ही समझें।   


 



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